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नए उपभोक्ता कानून में विज्ञापन में सेलिब्रिटी का दायित्व

नए उपभोक्ता कानून में विज्ञापन में सेलिब्रिटी का दायित्व

बात केवल इतनी थी कि अब तक विज्ञापन के भ्रामक निकलने पर सीधा उत्पादक को दोषी माना जाता रहा है किन्तु अब उपभोक्ता की पेरवी करने वाले प्रसिद्ध जाने माने व्यक्ति का  भी विज्ञापन में दी गयी सूचना के मिथ्या पाए जाने पर दायित्व होगा. पर हमारे देश में हर खबर एक हंगामे के साथ ही अवतरित होती है ,सो हंगामा हो रहा है.

वास्तव में कोई भी प्रसिद्ध व्यक्ति जब किसी बात की पेरवी करता है तो जनता उन को सहज ही मान लेती है ,यह उनके लिए  मन में सम्मान या प्यार के भाव के कारण  होता है. उत्पादक सेलेब्रिटी के माध्यम से अपने प्रोडक्ट का प्रचार करवा कर आम जनता की भावनाओ को शोषित करता है और इस शोषण में सीधा हाथ उस सेलेब्रिटी का होता है जो जानता है कि वह अपने चाहने वालो को प्रोडक्ट खरीदने की सिफारिश कर रहा है. उसकी सिफारिश इसलिए प्रभाव डालती है क्योंकि जनता उनसे प्यार करती है.पर विडम्बना यह है कि हमारे प्रिय पथप्रदर्शक स्वयं भी नहीं जानते होते कि वे क्या कह रहे है,उत्पाद का कभी प्रयोग तक नहीं किया होता . भावनाओ के शोषण का इससे बड़ा उदहारण नहीं हो सकता जो अनजाने में ही सही, पर हो रहा है .

कारण स्पष्ट है- न तो वे समाज सेवा कर रहे होते  है ,न ही उत्पादक के साथ रिश्तेदारी निभा रहे होते है . इसमें शुद्ध पैसा लिया दिया जाता है और वाणिज्यिक प्रयोजन रहता है .

दूसरे देशो में विज्ञापन करने वाले से अपेक्षा की जाती है कि वे प्रोडक्ट  का प्रयोग करके बोले.कुछ देशो में विज्ञापन में कहे गए कथ्य के भ्रामक निकलने पर माफी मांगने का प्रावधान है . हमारे प्रस्तावित उपभोक्ता कानून में दंड का प्रावधान किया जा रहा है जो इतना आसान नहीं होगा क्योकि सेलेब्रिटी कौन होगा यहा भी बात अटकेगी.केवल फ़िल्मी कलाकार या खिलाडी ही सेलेब्रिटी नहीं होते टाटा,बिरला नंदा या अम्बानी भी इस देश के सेलेब्रिटी है . तब क्या इनके परिवार के सदस्य यदि अपने व्यवसाय के बारे में कुछ कहेंगे तो सेलेब्रिटी होंगे . एम् डी एच मसालों का विज्ञापन तो  महाशिया जी स्वयं ही देते है क्या वह सेलेब्रिटी होंगे. बाबा रामदेव पतंजलि प्रोडक्ट्स की सिफारिश करते है  क्या वह सेलेब्रिटी होंगे.  

एक रोचक तथ्य  –जागो ग्राहक जागो के विज्ञापन के लिए उपभोक्ता मंत्रालय विज्ञापन बनाने वाली एजेंसी को किसी सेलेब्रिटी के मुख से जागो ग्राहक जागो कहलवाने के लिए चालीस हज़ार रुपये अधिक देता  रहा  है .क्या उपभोक्ता के लिए जागो ग्राहक जागो कहने वाला उपभोक्ता कानून का  विशेषज्ञ जो उपभोक्ता कानून और  उपभोक्ता अदालत से जुडा हो उपभोक्ता मामलो के लिए सेलेब्रिटी क्यों नहीं माना जा सकता.इसी तेरेह किसी विषय से जुडा  व्यक्ति यदि उस विशेष विषय पैर कुछ बोलता है तो वेह भी सेलेब्रिटी होगा अपने विषय के लिए .  सेलेब्रिटी शब्द ही भ्रामक होता जा रहा है . सुखद स्थिति होगी यदि सेलेब्रिटी विज्ञापन की दुनिया में भटकने  ही न आये और स्वेच्छा से विज्ञापन के लिए इनकार कर दे .क्योकि अब जब प्रश्न उठने लगे है तो स्थितिया सुखद नहीं होंगी. सामान्य रूप से प्रोफेशनल व्यक्ति जो मॉडलिंग के ही काम से जुडा /जुडी हो उसी के द्वारा विज्ञापन हो तो वह एक सामान्य रूप से प्रोडक्ट के बारे में दी जाने वाली सूचना होगा और वही उपभोक्ताओ को वास्तव में चाहिए . इस स्थिति में विज्ञापन भ्रामक होने पर उत्पादक ही जवाबदेह होगा जो सही स्थिति होगी. या तो सारे प्रवक्ता /मॉडल  अपने बोले गए शब्दों के लिए उत्तरदायी हो जिसमे सेलिब्रिटी भी आ जाते है यदि ऐसा संभव नहीं है तो सेलेब्रिटी शब्द को ही हटा दिया जाये  

जब मामले कोर्ट तक आने लगेंगे तो कई प्रश्न उलझन पैदा करेंगे . प्रश्न प्रमाणित करने का होगा और तर्क होगा कि जब विज्ञापन को रिकॉर्ड किया गया था तब प्रोडक्ट की  स्थिति बिलकुल दुरुस्त थी ,बाद में उत्पादक ने कुछ परिवर्तन कर दिया . दायित्व सेलिब्रिटी और उत्पादक के कंधो से शिफ्टिंग की प्रक्रिया से गुजरेगा . फिर क्या विज्ञापनकर्ता सेलिब्रिटी को निरंतर उसी प्रोडक्ट का प्रयोग करते रहना पड़ेगा जब तक विज्ञापन प्रचार में रहेगा . कब तक और कहा तक और कितने अन्तराल के बाद सचाई का टेस्ट होना आवश्यक होगा.

प्रश्न फ़िल्मी सितारों द्वारा अपनी फिल्मो के प्रचार का भी है. निसंदेह सब की रूचि अलग होती है तथा फ़िल्मी समीक्षाए आम जनता की राय बना देती है . जब डॉक्टर्स को, वकीलों को अपने प्रोफेशन के लिए अपने प्रचार की अनुमति नहीं है तो क्या फिल्मो को बेचने के लिए प्रोमोशनल प्रचार पर भी रोक क्यों न हो . जब इतना प्रचार नहीं होता था तब भी लोग फिल्मे देखते थे . अब इसे भी तो भ्रामक विज्ञापन की श्रेणी में रखा जा सकता है . एक दिन में इतने करोड़ में फिल्म गयी-इसमें भी तो जनता का दोहन होता है . क्यों न बाकी सब प्रोफेशंस  की तरह फिल्म इंडस्ट्री का भी कोड कंडक्ट हो .

उपभोक्ता मंत्रालय अभी इस मामले में कुछ समय लेना चाहता है और पुनः विचार करना चाहता है . अच्छी बात है . सेलेब्रिटी शब्द पर ही पुनः विचार की आवश्यकता है . एक कड़वाहट सी पसर रही है जो ठीक नहीं है.

डॉ प्रेम लता

पूर्व सदस्य ,उपभोक्ता अदालत

 

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