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मेडिकल नेग्लिजेन्स –क्या हो समाधान

                  मेडिकल नेग्लिजेन्स –क्या हो समाधान

                              (भाग-1)

अमूमन लोगो को यह शिकायत होती है कि मेडिकल नेगलिजेंस के मामले अदालत मे कम सफल होते है ओर डाक्टर के विरुध उनके फैलो डाक्टर  एक्सपर्ट ओपिनियन नहीं देते । सबसे पहले इस भ्रम को दूर करना बहुत आवश्यक है । सर्वेक्षण से यह देखा गया है कि अदालतों मे मेडिकल नेगलिजेंस के नाम पर  दर्ज होने वाले 50% मामले मेडिकल नेगलिजेंस के होते ही नहीं।जैसे – कोई बीमारी ठीक नहीं हो सकी तो उसे मेडिकल नेगलिजेंस कह दिया जाता है । किसी सत्तर साल के बुजुर्ग को जिसे पहले से ही ब्लड प्रेशर,सुगर आदि की समस्या है ओर तेज दवा नहीं दी जा सकती ,उसकी स्लो रिकवरी मे भी डाक्टर को जिम्मेदार मान लिया जाता है ।या फिर कभी कभी फीस देने से कतराने के लिए भी ऐसे आरोप लगा दिये जाते है ।बड़ी अदालतों का यह मानना है कि डाक्टर बीमारी ठीक करने का गारंटर नहीं होता । दूसरी बात , आपराधिक मामले के लिए आपराधिक मंशा का होना आवश्यक होता है जबकी मौत होने मे  डाक्टर की मंशा तो मर्डर नहीं हो सकती ।  जो मामले वास्तव मे असावधानी के होते है ,उन्हे ठीक से प्रस्तुत नहीं किया जाता । कभी इलाज से संबधी दस्तावेज़ नहीं होते ,कभी कभी तो हस्पताल मे इलाज करने वाले डाक्टर का नाम तक पता नहीं होता । एक समस्या एक्सपर्ट ओपिनियन की भी होती है ।

मेडिकल नेगलिजेंस कब मानी जा सकती है ।

जब किसी अंग को डाक्टर की लापरवाही से नुकसान हो जाए ,जब रोग की ठीक पहचान न करने पर  गलत इलाज कर दिया जाए ओर बीमारी ठीक होने की बजाए बिगड़ जाए ओर फिर  डाक्टर बदलने पर तथा दवा बदलने पर इलाज लग जाए। 

जब इलाज मेडिकल स्थापित मानदंडो के हिसाब से न चुन कर प्रयोग करने की तरह नए तरीके से किया जाए ।

इन सब बातो  को परखने के लिए भी किसी डाक्टर की राय की आवश्यकता होती है क्योकि आम आदमी यह भी नहीं बता सकता कि इलाज ठीक था  या नहीं ।इसलिए कोई भी आरोप लगाने से पहले डाक्टरी राय आपके पास होनी चाहिए ।  

कुछ बातो  के लिए डाक्टर की राय की आवश्यकता अलग से नहीं पड़ती –जैसे ओपराशन करते समय किसी ओजार का अंदर रेह जाना ,तकलीफ होने पर फिर से ओपराशन करके केंची या रुई आदी को निकाला जाना –यह अपने आप मे सिद्ध बात होती है कि लापेरवाही हुई ।यदि ऑपरेशन  करते समय लाइट चली गई ,जनरेटेर की व्यवस्था नहीं थी ,या समय पर नर्स उपलब्ध नहीं थी । ऑक्सीज़न की व्यवस्था ठीक नहीं थी आदि बातो के लिए भी लपेरवाही कही जा सकती है । 

कुछ मामले सेवा मे कमी के होते है –जैसे हॉस्पिटल का रसीद ,डिस्चार्ज समरी या ट्रीटमंट रेकॉर्ड देने से मना कर देना,आवश्यक वस्तुओ की समुचित व्यवस्था न होना ।

मेडिकल नेगलिजेंस का पता लगाने के लिए आप क्या करे

डिस्चार्ज समरी के आधार पर पता करे कि रोग की पहचान ओर किया गया इलाज सही था ।

यदि ट्रीटमंट स्लो होता है तो मरीज की उम्र तथा  शरीर की स्थिति कैसी थी ।

रोगी को इलाज के लिए किस स्टेज  पर लाया गया –यदि बीमारी बड़ चुकी होगी तो इलाज मे भी देर लग सकती है ओर रोगी ठीक नहीं भी हो सकता ।

बीमरी से संबाधी लिटरेचर की मदद ले जिससे यह पता चल सके कि लक्षण क्या थे ओर इलाज क्या किया गया । कई बार कई बीमेरियों मे एक जैसे लक्षण दिखते है ,सही जानकारी के लिए लेब टेस्टिंग पर भरोसा करे ।

एक्सरे ओर लेब  टेस्टिंग तथा किए गए इलाज का मिलान करे ओर जाने इलाज ठीक था या नहीं ।

किन स्थितियो मे मेडिकल नेगलिजेस नहीं मानी जाती -  

मेडिकल साइंस मे स्थापित तरीको मे से यदि एक तरीका अपनाने पर भी रोग ठीक न हो सके।

रोग की पहचान ठीक की गई ओर इलाज भी ठीक चुना गया हो ।

सुगर आदि के रोगी को तेज दवा न दी जाने से ठीक होने मे देर लग रही हो ।

रोग से संबाधी उपस्कर न होने पर या खाली बेड न होने पर या संबद्ध एक्सपर्ट डाक्टर के उपलब्ध न होने पर रोगी को इलाज देने  से मना कर दिया जाए।   

                              क्रमश....

                             

 

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