ई-कॉमेर्स ओर उपभोक्ता कानून
बीसवी सदी की इस आरंभिक स्टेज पर ही पारम्परिक खरीदारी का युग तो जैसे समाप्त
हो गया है। ई कामर्स ने हमारे जीवन की पद्धति को ही बादल दिया है । नेट से खरीदारी
ने इतना ज़ोर पकड़ लिया है कि किसी विशिष्ट कानून के अभाव मे भी सब काम चल रहा है ।
वर्ष 1990 मे अमेज़न कंपनी के भारत मे प्रवेश करने के साथ ही इंटरनेट
से खरीद का दौर चल पड़ा क्योकि रिटेलर ओर ओकश्नर नेट पर उपलब्ध हो गए थे । 2006 मे सोशल नेटवर्किंग
के आने से विज्ञापनो का दौर ओर तेज़ हो गया ओर अब तो ब्रॉड बैंड ,मोबाइल
डिवाइसिस, इंटरनेट के माध्यम से मार्केट सहज उपलब्धहै । मार्केट के असंख्य केटलोग एक क्लिक से खोल सकते
है । स्पर्धा के बड्ने से सस्ते दामो पर मन पसंद ओर अपनी पॉकेट के अनुसार सब कुछ
उपलब्ध हो रहा है ।
किन्तु यह तो नहीं कह सकते कि उपभोक्ता संतुष्ट है । कुछ कठिनाइया तो जानकारी
के अभाव मे होती है क्योकि हमारे देश मे
लोगो को आधी अधूरी जानकारी से काम चलाने की आदत
है । ई कामेर्स से की गई खरीददारी से उत्पन्न हुई शिकायतों के आंकडो पर जाए
तो अकोशा के सर्वेक्षण के अनुसार वर्ष 2013
की प्रथ म ति तो माही मे ही मे उपभोक्ता
शिकायतो का 58 % प्रॉडक्ट मे दोष ,ऑर्डर से इतर डेलीवेरी
कर देना या डेलीवेरी न होने को लेकर है तथा 29 % रिफ़ंड के मामले रहे ।
शिकायतों के कानूनी प्रावधानों को देखे तो वर्ष 2000 मे ही इन्फोर्मशन
टेक्नोलोजी एक्ट के बन जाने से ए-मेल से हुए संवाद को कानूनी मान्यता मिल गई जिससे
उसे एक लीगल दस्तावेज़ माना जा सकता है।ट्रिमेक्स इंटेरनाशनल लिमेटेड ॰बनाम वेदंता एलुमियम लिमिटेड मामले मे सर्वोच न्यायल्ये ने एसे
कांट्रेक्ट को लीगल माना। हमारे पास
उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम तो है किन्तु कुछ व्यावहारिक कठिनाइया तब आती है जब उपभोक्ता
इंटरनेट के माध्यम से वैबसाइट की पूरी जानकारी जाने बिना डील केर लेता है ,पैसे भी क्रेडिट कार्ड से दे देता है ओर फिर
वेब साइट गायब हो जाती है । उसका पूरा पता नहीं होने के कारण उपभोक्ता अदलते कुछ
मदद नहीं केर सकती क्योकि दोषी पक्ष को अदालत का नोटिस देने के लिए पूरा पता चाहिए
। इस संबंध मे कोनसीम इंन्फो प्राइवेट लिमिटेड बनाम गूगल इंडिया प्राइवेट लिमिटेड
के मामले मे दिल्ली की अदालत मे गूगल ने यह तर्क दिया कि गूगल एक सर्च इंजिन है,इस पर कोई भी वैबसाइट क्या विज्ञापन देती है इसका दायित्व गूगल का नहीं होता । अदालत ने इस टतर्क को माना
किन्तु यह भी कहा कि यदि कोई फ़्रौड की सूचना गूगल को मिलती है तो 36 घंटो के
बीच उसे भी एक्शन लेना होगा ।
दूसरी कठिनाई यह आती है की मामला किस अदालत मे डाला जाए –एक्शन कहा हुआ माना जाए । इंटरनेट के माध्यम से होने
वाली खरीद के लिए उपभोक्ता अदलते दोनों
स्थानो पर मामले दर्ज केर रही है । इस लिए यह भी समस्या नहीं रही । नेट पर भ्रामक
विज्ञापनो के लिए भी उपभोक्ता अदलते सक्षम है किन्तु सही पता होना आवश्यक है । यहा
तक की किसी चैनल पर दिये जाने वाले भ्रामक प्रोग्राम के लिए चनेल को भी पार्टी
बनाया जा सकता है । जैसे प्राइज़ की घोषणा करके फिर कुछ पैसे जमा करने के लिए कह
देना जबकि पहली घोषणा मे यह बात नहीं बताई जाती। कुल मिला कर काम उपभोक्ता अदालतों
से चल रहा है पर कुछ सावधानिया बरतना आवश्यक है –
·
डील करने से पहले
कंपनी के कारोबार का पता ,उसका पंजीकृत ऑफिस तथा शाखाओ आदि की जानकारी
ले । अपरिचित वेब पर भरोसा न करे
·
समान बेचने की प्रक्रिया ,ट्राकिंग संबधी सूचना प्राइवसी पॉलिसी आदी
की जानकारी के बिना अपने आकाओंट नंबर न दे
। अपने अकाउंट को चेक करते रहे ।
·
यदि आपका ऑर्डर लेने
के बाद प्रॉडक्ट उपलब्ध नहीं की सूचना मिलती है तो आप वेब को दोष नहीं दे सकते
क्योकि यह प्लैटफ़ार्म आपको अनये डीलरो से समान उपलब्ध कराते है ओर यह मांग ओर सफ्लाई
के उपर निर्भर करता है । अमूमन यह सूचना
48 घंटो मे मिलनी चाहिए ओर आपके पैसे के रिफ़ंड की प्रक्रिया भी शुरू हो जानी चाहिए
या आप प्रतीक्षा के लिए तैयार रहे ।
·
यदि आप पेमेंट केश
ऑन डेलीवेरी पर करते है तो रिफ़ंड की लंबी प्रक्रिया से बच सकते है। आपका ऑर्डर कान्फ़र्म
होने की आपको हर बार सूचना ओर ऑर्डर नंबर दिया जाता है ।
·
यदि आप बार बार केश
ऑन डिलीवेरी ऑर्डर करके डेलीवेरी नहीं लेते तो कंपनी के रेकॉर्ड मे आप डिफाल्टर हो
सकते है ओर आपका ऑर्डर न ले या ऑर्डर
कनफेर्म न करे तो आपको अधिक अधिकार नहीं रेहता क्योकि अपना प्रॉडक्ट न बेचने का
उनका अधिकार है ।
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