उपभोक्ता अदालत मे कैसे दर्ज होगी आपकी
शिकायत
कई बार ऐसा होता है कि आप अपनी शिकायत ले
कर उपभोक्ता अदालत पहुचते है ओर आपसे यह कहा जाता है कि आपका केस उपभोक्ता अदालत मे नहीं लग सकता । या
फिर आपका केस तो बनता है पर इस उपभोक्ता फोरम मे नहीं लगेगा । फिर आप कोन से फोरम मे जाए ओर यह बटवारा किस प्रकार से किया
गया है –ये सब आम उपभोक्ताओ के लिए आवश्यक सूचनाए है।
उपभोक्ता अदालत मे केस दायर करने के लिए
सबसे पहले प्राथमिक सुनवाई होती है जो शिकायत दर्ज करने के 21 दिनो के भीतर ही कर
ली जाती है जिसमे यह देखा जाता है कि शिकायत करता उपभोक्ता बंता है या नाही । इस
आधार पर शिकायत या दर्ज कर ली मानी जाती है त रिजैक्ट कर दी जाती है जिसके लिए कुछ
आवश्यक बातो को देखा जाता है ,जैसे -
उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अनुसार
उपभोक्ता होने की पहली शर्त है-वस्तु खरीदने के लिए या सेवाए लेने के लिए दाम का
चुकाया जाना । यदि आपने कोई वस्तु खरीदी तो नहीं है ,किसी
ने आपको भेंट दी है पर जिसने भेंट दी है उसने उसका दाम चुकाया है तो भी आप त्रुटि
होने पर उपभोक्ता अदालत मे शिकायत कर सकते है ।बस आपके पास दाम चुकाने का प्रमाण
/रसीद होनी चाहिए ।पर कई बार ऐसा भी होता है कि आपने रसीद नही ली होती या दुकानदार
रसीद नहीं देता ,ऐसी स्थिति मे कभी कभी कोई ओर प्रमाण भी काम
आ जाता है –जैसे फ़र्निचर खरीदने पर कुछ एडवांस दिया हो ,उसे
किसी पर्ची पर या विजिटिंग कार्ड पर लिखा
हो कि बैलेन्स भुगतान कितना करना है।पर हर बार ऐसा नहीं हो सकता, इसलिए दाम चुकाने का प्रमाण ही आपको उपभोक्ता बना सकता है ,फ्री की सेवाओ या फ्री के सामान को खरीदना नहीं माना जा सकता ।यहा यह
बताना बहुत आवश्यक है कि बड़े व्यापारी उपभोक्ता नहीं होते जो वस्तुए अपने इस्तेमाल
के लिए न खरीद कर आगे बेचने ओर लिए खरीदते है ।
आपकी शिकायत दर्ज करते समय जो दूसरी बात
देखी जाती है वह यह कि आपकी शिकायत मे कुल कितनी धन राशी कितनी का मसला है ।बीस
लाख तक की राशी के लिए आप जिला स्टार की उपभोक्ता अदालत मे शिकायत कर सकते है,बीस
लाख से एक करोड़ तक राज्ये उपभोक्ता आयोग जाएंगे ओर एक करोड़ से अधिक के मामले के लिए सीधे
राष्ट्रिए उपभोक्ता आयोग मे मामला दर्ज होगा । देश भर मे अनेक उपभोक्ता अदलते काम
कर रही है जो स्थान की दृष्टी से पोलिस थाने के अनुसार विभाजित है। उपभोक्ता अपनी
शिकायत उसी जिले की अदालत मे अपना केस दायर कर सकता है जिस जिले मे विपक्षी का
कार्याल्य/दूकान /शोरूम /व्यवसाए हो ओर जहा से वस्तु खरीदी हो या सेवा प्राप्त की
हो ।उपभोक्ता अपनी सुविधा से अपने निवास के आस पास की अदालत नहीं चुन सकता यदि
विपक्षी उसी क्षेत्र का नहीं है ।
तीसरी आवश्यक बात है कि उपभोक्ता विवाद
शुरू होने के दो वर्ष के भीतर शिकायत कर सकता है । यह समये सीमा उपभोक्ता संरक्षण
अधिनियम मे ही लिखी गई है ।
एक दूसरा प्रश्न भी होता है कि क्या केवल
उपभोक्ता ही शिकायत कर सकता है या कोई ओर व्यक्ति भी उसके लिए शिकायत कर्ता हो
सकता है । इसके लिए भी न्याए व्यवथा मे
प्रावधान है । नाबालिग बचे के लिए माता -पिता शिकायत कर सकते है ,पति
पत्नी एक दूसरे के लिए शिकायत कर सकते है ,भेंट की गई वस्तु
के लिए वस्तु का वास्तविक प्रयोग करने वाला शिकायत कर्ता हो सकता है । यही नहीं यदि कोई व्यक्ति स्वयं
केस लड़ने के लिए अदालत नहीं जा सकता तो शिकायत डालने के बाद किसी भी व्यक्ति को
अपनी तरफ से अदालत की कार्येवाही मे भाग लेने के लिए अधिकृत कर सकता है।
उपभोक्ता के लिए सबसे आवश्यक बात जानने की
यह है कि वह अदालत से क्या प्रार्थना कर सकता है ओर उपभोक्ता अदालते उसे क्या राहत
दे सकती है । इन अदालतों मे खरीद की गई बाज़ार की हर वस्तु के लिए शिकायत हो सकती
है ,इसलिए वस्तु मे पाये गए दोष को दूर करने के ,उसे बदल
कर देने के या उसे वापिस ले कर पैसे लोटाने के-कोई भी आदेश यह अदलते दे सकती है
जिसे वास्तविक नुकसान की भरपाई हो सके । दूसरा सेवा मे कमी होने पर अदालत सेवा मे सुधार के लिए या
सेवा न दी जाने पर पैसे लोटने के आदेश दे
सकती है ।वस्तु बेचने मे या सेवा देने मे यदि कोई ट्रैडर अनुचित तरीके का प्रयोग
करके ग्राहक को परेशान करता है तो भी उसे अनुचित व्यापार करने के लिया अदालत
मुआवजे के आदेश दे सकती है । इसके अतिरिक्त अदालत ग्राहक को हुए मानसिक कष्ट के
लिए तथा कानूनी खर्च के भी आदेश दे सकते है । जहा कही किसी का पैसा रुका हो ,उसके लिए मूल राशी के साथ व्याज के आदेश भी दिये जा सकते है ।
कई बार ट्रैडर के व्यवहार से एक से अधिक
लोगो को नुकसान होता है ।जैसे दूध की थैली मे दूध कम होना । शिकायत
तो एक उपभोक्ता ले कर आता है पर दोध तो कितनी जनता को कम मिला होता है । ऐसे मे
अदालते उपभोक्ता के लिए मुआवजे के आदेश के साथ व्यापारी को एक मोटी रकम उपभोक्ता कल्याण कोश मे जमा
करने के आदेश भी दे सकती है । ऐसा इसलिए किया जाता है ताकी व्यापारी गलत तरीके से
मुनाफा करने के बाद सस्ते मे छूट जाने पर
अपनी इन गतिविधियो को चलाता न रहे ओर आम
जनता को भी अप्रत्यक्ष रूप से कुछ राहत मिल सके ।
उपभोक्ता अदालत एक सर्व सुलभ ओर सस्ती प्रक्रिया है ,इसलिये इन प्रावधानों के दुरुप्रयोग को रोकने के लिए भी
उपाए किए गए है । इस अधिनियम के अनुसार झूठी शिकायत डाल कर अदालत का समये नष्ट
करने या किसी को अकारण परेशान करने की मंशा से
शिकायत डालने पर शिकायतकर्ता पर दस हज़ार रुपये तक का जुर्माना लगाया जा
सकता है ।इन अदालतों के निर्णये का पालन न करने पर भी दोषी व्यक्ति को दस हज़ार रुपये
का आर्थिक दंड तथा तीन साल तक की
सज़ा दी जा सकती है ओर ये सज़ा भुगतने के बाद भी
आदेश का पालन करना बाकी रहता है ।
आवश्यकता पड़ने पर आदेश का पालन करवाने के लिए संपाती भी जब्त की जा सकती है ।
प्रेम लता
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