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नए वाहन मे उत्पादन दोष – क्या हो समाधान

                  नए वाहन मे उत्पादन दोष – क्या हो समाधान

बरसो की कमाई के बाद एक दिन आता है जब आप कुछ जमा पूंजी ओर कुछ बैंक से उधार ले कर नई गाड़ी अपने आँगन मे खड़ी देखते है । पर तब क्या हो जब दूसरे तीसरे ही दिन आपकी गाड़ी झटके खाने लगे ,चलने से इंकार कर दे । पेट्रोल लीक होने लगे या गियर न बदली जाए । आप डीलर के पास जाएंगे तो बहुत मामूली बात बता कर ठीक ठाक कर देगा । यहा यह जान लीजिये किआपको यदि लगता है कि गाड़ी मे कुछ मूलभूत गड़बड़ी है तो जबर्दस्ती गाड़ी न चलाये । हो सकता है आपके चलाने से गाड़ी ओर खराब हो जाए ओर तब न डीलर अपनी जिमेदारी लेगा न उत्पादक ।यहा तक कि बीमा कंपनियो के भी यह नियम है कि वाहन  जहा खराब हो ,उसे वही छोड़ दे । बीमा कंपनी वाहन  को उठा कर लाने के लिए क्रेन का भी खर्च देती है पर यदि आपने वाहन  मे गड़बड़ी आ जाने के बाद भी उसे चला कर ओर नुकसान कर दिया तो बीमाँ  कंपनी इसमे आपको दोषी मान कर मरम्मत का जिम्मा नहीं लेगी। 

अनुज पाल ने भी छे लाख दस हज़ार खर्च कर टाटा इंडिगो बूक कराई । । बिल काटने से पहले ही 16.4.2007 को  टेस्ट ड्राइव मे कई नुक्स मिले जैसे-

1.   वाइपर कम नहीं कर रहे थे

2.   दरवाजे ठीक से बंद नहीं हो रहे थे

3.   ए सी की कूलिंग ठीक नहीं थी,

4.   पानी रिस रहा था ।  

5.   इंजन घर घर की  आवाज कर रहा था

6.    डीजल भी लीक कर रहा था ।

      इन सब के बावजूद भी डीलर ने सब कुछ ठीक करके 18.4.2007 को गाड़ी अनुज पाल  को बेच दी। इसके लिए कोई पैसा नहीं लिया । पर 20॰11. 2007 को जब गाड़ी शहर से बाहर गई तो बीच सड़क पर जानवर को बचाने के लिए जैसे ही गाड़ी मोड़ने की कोशिश की ,वह वही अटक गई ,संतुलन खोने से गड्डे मे जा गिरी। गाड़ी पूरी तरह नष्ट  हो गई ।डीलर ओर कंपनी दोनों मे से कोई भी जिम्मेवारी  लेने को तैयार नहीं हुआ । नॅशनल कमीशन ने इस मामले मे 18.4.2014 को सभी पहलुओ पर विवेचन करते हुए अपना निर्णय सुनाते हुए यह माना कि वाहन  मे उत्पादन का दोष था। चूकी अदालत मे विपक्षी पार्टी ने यह भी माना कि इस मोडेल मे कुछ त्रुटियाँ पाई गई थी जिनहे  अब ठीक किया गया है अदालत ने  इसके लिए डीलर तथा उत्पादक दोनों ही जिमेदार होंगे । डीलर ने जानते हुए भी ओर इतनी  सारी त्रुटियो के बावजूद भी गाड़ी बेच दी । ।नॅशनल कमिशन ने इस मामले मे उपभोक्ता को तीन लाख मुआवजा तथा दस हज़ार रुपये वाद खर्च के लिए देने के आदेश दिये ।मरम्मत के खर्च के लिए बीमा कंपनी का दायित्व बताया ।

      नॅशनल कमीशन के इस आदेश  से पहले भी सर्वोच न्यायालये ने इसी तर्ज पर कई फासले किए है ओर इस निर्णय का आधार सर्वोच न्यायालए के वर्ष  2004 के  जोसफिलिप ममपिल्लई बनाम प्रिमियर आटोमोबाइल था  जिसमे सर्वोच न्यायालए ने बड़े विस्तार से इस प्रकार के मामलो मे सिधान्त प्रतिपादित किए थे ।  इस केस मे भी अदालत ने खेद व्यक्त किया था  कि पवाहन कंपनीय तथा डीलर  अपनी गलती स्वीकार करने की बजाए अपील मे जाते है जिसे उपभोक्ता को अनावश्यक कठिनाइयो का सामना करना पड़ता है । जोसफिलिप ममपिल्लई के 2004 के इस मामले मे भी वाहन  को ग्यारह बार मरम्मत  के लिए  ले जाया गया, फिर भी दोष नहीं निकाले जा सके । विपक्षी यह तर्क देते रहे कि वारंटी के दोरान डीलर का काम गाड़ी ठीक कर देना मात्र है । उत्पादक  बिना विशेषज्ञे की राय  के उत्पादन मे दोष मनाने को अनुचित  मानता रहा। सर्वोच न्यायालय ने उस मामले मे निम्न लिखित कुछ बाते स्पष्ट कर दी थी जिन के अनुसार ही नॅशनल कमीशन ने अपना यह आदेश सुनाया ।

1.      यदि वाहन  के किसी भाग की  मरम्मत करने से या किसी भाग को बदल देने से वाहन  ठीक हो सकता है ओर ठीक चलता है तो पूरी गाड़ी को बदलने कि आवश्यकता नहीं होगी। वाहन के सभी पुर्जे अलग अलग बनते है ओर उन्हे इकठा जोड़ कर ही वाहन सम्पूर्ण होता है । इसलिए पार्ट ही खराब या ठीक हो सकता है , उसकी बॉडी बदलने का कोई प्रयोजन नहीं होता ।  

2.      यदि वाहन मे प्रारम्भ  से ही दोष रह गया हो ओर यह जानते हुए भी उसे डीलर ने बेच दिया हो तो गाड़ी को ठीक करने की जिमेदारी के साथ साथ उपभोक्ता को हुए कष्ट के लिए मुआवजा मिलेगा।  

3.   यदि वाहन  को बार बार मरम्मत के लिए भेजे जाने पर भी वह ठीक न हो सके तो उसमे उत्पादन दोष स्वत सिद्ध माना जाता है ,उसके लिए विशेषज्ञ की राय की आवश्यकता नहीं रह जाती।

      हाल ही मे वर्ष 2012 मे एक ओर प्रश्न नॅशनल कमीशन  के सामने आया कि यदि मामला अदालत मे चलते हुए शिकायत्कर्ता वाहन को बेच दे तो क्या वह उपभोक्ता होगा । टाटा मोटर्स लिमिटेड बनाम हजूर महाराज बाबा के इस मामले मे नॅशनल कमीशन  ने शिकायत कर्ता को उपभोक्ता नहीं माना ।  इस प्रकार का निर्णये इसी कमीशन ने 2008 मे होशियारपुर इमप्रोवमेंट ट्रस्ट  बनाम मेजर अमृत लाल सैनी के मामले मे भी दिया था। 

 

इसलिए वाहन खरीदते समय कुछ बातो  का ध्यान रखना आवश्यक होता है ;

      क) प्रारंभ मे ही कोई दोष दिखने लगे तो अलस्य न करे, तुरंत डीलर से संपर्क करे ओर वाहन तब तक स्वीकार न करे जब तक पूरे परीक्षण से यह प्रमाणित न हो जाए कि वाहन चलाने योगय स्थिति मे है । वारंटी कि अवधि मे आपको कुछ खर्च नहीं करना, डीलर का दायित्व होता है कि आपकी गाड़ी वारंटी मे ठीक करके दे ।

      ख) गाड़ी जब भी मरम्मत के लिए जाए ,जॉब कार्ड अवश्य ले ,गाड़ी कि सही स्थिति का यह प्रमाण होता है ।

      ग) प्रारम्भ  मे ही दो चार बार मे भी आपको लगे कि दोष दूर नहीं हो रहा तो तुरत उत्पादक को भी लिखे ,गाड़ी बदलने का अनुरोध भी कर सकते है ।

      घ) उपभोक्ता अदालत आपको राहत मे कंपनी को वाहन वापिस ले कर  वाहन की  राशी वापिस करने के आदेश दे सकती है,मरम्मत के आदेश दे सकती है,आपको हुए कष्ट के लिए मुआवजा दिला सकती है ओर अदालत मे हुए खर्च देने के भी आदेश दे सकती है । यदि आवश्यकता पड़े तो विशेषज्ञ से राय  भी मगा सकती है ।

      च) यदि आपका मामला अदालत मे चल रहा है ओर इस बीच आप वाहन बेच देता है तो आप मामला आगे नहीं चला सकते क्योकि आप अब उपभोक्ता नहीं रहते ।   

 

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