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उप्भोक्ता अदालत के आदेश की अनुपालन-याचिका;समय सीमा का प्रश्न

उप्भोक्ता अदालत के आदेश की अनुपालन-याचिका;समय सीमा का प्रश्न

उप्भोक्ता अदालत के आदेश का अनुपालन ना किये जाने की स्थिति मे तीस दिन के बाद उप्भोक्ता एक  याचिका दायर कर अनुपालन करवाने की प्रार्थना कर सक्ता है, ऐसा प्रावधान उप्भोक्ता संरक्षण अधिनियम मे है. किंतु कही भी स्पष्ट रूप से यह विहित नही किया गया कि ऐसी याचिका किस समय सीमा तक स्वीकार की जा सक्ती है. इसलिये जब कभी भी ऐसी स्थिति सामने आयी जब उप्भोक्ता कई वर्षो बाद याचिका ले कर साम्ने आया, यह प्रश्न उठ्ता रहा कि इस विषय मे कानून क्या है . नेश्नल कमीशन ने बार बार अपनी कठिनाई व्यक्त की किंतु लगभग माम्लो मे उप्भोक्तओ के हित को ध्यान मे रख कर फैसला किया गया . अभी हाल ही मे ऐसा प्रश्न फिर नेश्नल कमिशन के सम्ने आया जिस्मे नेश्नल कमिशन ने यचिका दयर केरने  की समय सीमा पर अप्नी कोइ राय ना देते हुए इस प्रश्न को अनुपालन करवाने  वले कोर्ट पेर छोड दिया जसटिस डी. के. जैन की खड्पीठ ने जे.एच.फाले बनाम विजय पोड्वाल के 1(2018)सी.पी.जे.632(एन.सी.)के माम्ले मे अप्ने 17 जनवरी के आदेश मे तीन बिंदुओ पर अप्नी राय दी-

१.रिकवरी सेर्टिफिकेट मे व्याज दर को आदेश की भाषा के अनुसार ठीक किया जाये

२.  एक उप्भोक्ता की कोर्ट प्रक्रिया के दोरान म्रित्यु से आदेश पर प्रभाव नही पडेगा

३.अनुपलन यचिका के आदेश की तिथि 1.8.2002 से 12 वर्ष बाद दायर करने  का प्रश्न अनुत्तरित रह्ने दिया –अर्थार्त  यह विषय भी अनुपालन कर्ता कोर्ट मे उठाया जयेगा .

नेश्नल कमिशन ने इस से पह्ले के कई आदेशो मे विलम्ब से दायर याचिकओ पर अप्ने आदेश उप्भोक्तो के पक्ष मे देते हुए यह स्वीकार किया कि अधिनियम मे किसि समय सीमा का प्रव्धान नही है. नेश्नल कमीशन ने अप्ने प्रेम चंद्रा वर्शनेय बनाम मुरारी लाल शर्मा के माम्ले मे अप्ने 12 सितम्बर 2007 के आदेश  मे तथा  20 सितम्बर 2010 के एस. से. गल्होत्र बनाम मोहाली बेंक के आदेश मे  याचिका को स्वीकर केर लिया तथा “रेगुलेशन 2005 मे दी गयी सभी याचिकाओ के तीस दिन की समय सीमा को अदलत के अनुपालन सम्बधी याचिका  के लिये लागूनही माना

किंतु नेश्नल कमिशन ने ही अन्य कई मामलो मे विलम्ब से दायर की गयी यचिकाओ के अनुपालन का आदेश देने मे काठिनाई की बात स्पष्ट रूप से मानी -

·         आदेश की प्रकृति को देख्ते हुए कभी कभी समय निकल जाने के बाद उस आदेश की अर्थ्वत्ता ही समप्त हो जाती है .दोष्पूर्ण वाहन की खरीद पर यदि अदालत उसे बदल देने या पैसा वापिस करने का आदेश देती है तो दोश्पूर्ण वाहन भी लौटाना होता है . वेर्षो बीत जाने के बाद इस आदेशका अनुपालन नही हो सकता क्योकि तब तक वाहन की स्थिति वेह नही  रेह्ती जो आदेश के समये थी. इसी प्रकार से वाहन के दुर्घटना ग्रस्त होने पर बीमा कम्पनि को मरम्मत करंने के लिये राशी के अनुमोदन के आदेश की भी कोई संगती नही रह्ती यदि उप्भोक्ता साल्वेज नही लोटाता या मरम्मत नही करवाता.

अब अधिक महत्व्पूर्ण प्रश्न यह है कि नये उप्भोक्ता संरक्श्न अधिनियम मे आदेश के अनुपालन के विषय मे क्या प्रव्धान किये गये है. उल्लेख्निय है कि वर्त्मान उप्भोक्ता संरक्शन अधिनियम के  स्थान पर नया उप्भोक्ता संरक्शन बिल्ल 2018 को केबिनेट का अनुमोदन प्राप्त  हो चुका है तथा सेलेक्ट कमिटि की प्रक्रिया से भी गुज़र चुका है ओर वह लोक सभा के सम्कश रखा जा चुका है तथा अब इस्के शीघ्र पारित होने की सम्भावना है.

यह उप्भोक्ता अदलतो का अनुभव रहा है कि  उप्भोक्ता अदालत के आदेशो के अनुपालन की स्थिति बडी शोचनीये रही है ओर नये कानून की रूप रेखा  बनाते समये मंत्रलय का  इस मुद्दे पर सब्से अधिक ध्यान रहा है. यह एक सुखद स्थिति है कि आदेश के अनुपालन के सम्बधमे  नये कानून मे बडे कठोर प्रव्धान किये गये है –

धारा 60 के अनुसार -

1.  यदि उप्भोक्ता अदालत अप्ने आदेश का अनुपालन करवाने  मे कठिनाई अनुभव करती  है तो आदेश को अनुपलन के लिये सिविल कोर्ट मे भेज सकती है ओर आदेश का अनुपलन सिविल कोर्ट की डिक्री की तह से किया जायेगा.

2.  आदेश होने के तीस दिन की अवधी मे अनुपलन ना किये जाने पर दोषी व्यक्ति पेर प्रति दिन के क अनुसार आर्थिक दंड देने का प्रव्धान किया गया है जो आदेश के अनुपलन होने की तिथी तक लागू रहेगा .

3.  उप्भोक्ता आदेश की राशी के लिये अदालत से रेकवरी सेर्टिफिकेट भी ले सकता है जिसे रेवेन्यु विभाग  के द्वारा वसूला जायेगा

4.  इस धारा के अनुसार दोषी व्यक्ति के विरुद्ध नोटिस,वारंट, नोन बेलेबल वरंट जारी हो सक्ते है, गिरफ्तार किया जा सक्ता है,जेल भेजा जा सक्ता है ,सम्पति ज़ब्त की जा सक्ती तथा बेची भी जा सक्ती है.

किंतु धारा 60 या अन्य किसी भी धारा मे अनुपालन याचिका के समय सीमा की बात नही की गयी किंतु “जैसा प्रव्धान किया जायेगा” शब्द उपर्युक्त सभी प्रव्धानो के साथ लिख दिये गये है.दांडिक प्रव्धान कब से लागू होंगे यह भी नही लिखा गया ना ही कही आदेश की प्रमणित प्रति की तिथि को आधर मानने की ही बात कह गयी है.

इस से दो बाते स्वत स्पष्ट होती है- एक मंत्रलये इस विषये मे कठोर नियम तथा उप्नियमो के मध्यम से उप्भोक्ता अदलतो को सशक्त करेगा.दूसरा समय सीमा का भी स्पष्ट प्रव्धान ना केरके  तथ्यो के आधार पर निर्णय लेने की छूट अदलतो को दी जायेगी.

उप्भोक्तओ के लिये एक स्वर्णिम युग का प्ररम्भ माना जायेगा जब यह कानून अप्ने इस अनुमोदित स्वरूप मे पारित हो कर उप्भोक्ताओ  की सेवा मे सक्रिय होगा .

 

 

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