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मध्यस्थता-एक सुलभ विवाद निवारण पद्धती

                   मध्यस्थता-एक सुलभ विवाद निवारण पद्धती

मध्यस्थता के माध्यम से विवाद निवारण हमारी बहुत पुरानी परंपरा रही है जो आज भी पंचायत के रूप मे गाँव मे जीवित है । किन्तु समाज की स्थिति मे इतना बदलाव आ गया है कि कोई पड़ोसी भी किसी के व्यक्तिगत मामलो मे दखल नहीं देता , न किसी पर कोई भरोसा करना चाहता है । समाज मे सम्मानित निष्पक्ष व्यक्तियों के माध्यम से जो फैसले हुआ करते थे ,लगभग उसी रूप मे आज मध्यस्थता की पद्धती हमारे न्यायालयों मे विकसित हो चुकी है ।सर्वोच न्यायल्य,तथा राज्यो के उच्च न्यायालयों मे तो मध्यस्थता केंद्रे स्थापित हो चुके है,अब जिला स्तर पर भी न्यायालयों के  साथ मध्यस्था केंद्र स्थापित हो गए है । न्यायालयों मे चल रहे मामलो को सुनते समय यदि समझोते की कोई संभावना दिखे तो उस मामले को कोर्ट के साथ ही स्थापित किए गए मध्यस्थता केंद्र मे भेजा जाता है जिसमे प्रशिक्षित मध्यस्थ समझोते  मे सहायता करते है । यदि कुछ शर्तो के साथ समझोटा हो जाता है तो उसे कोर्ट मे भेजा जाता है जिसे जज अपने फैसले का रूप दे कर आदेश दे देते है । इस प्रक्रिया मे समये तो बचता ही है ,दोनों पक्ष स्वयं अपना फैसला केरते है ओर दोनों की जीत होती है ,कोई हारता नहीं । यह प्रक्रिया काफी कारगर सीध हो रही है ओर अदालतों मे लंबित पड़े कई मामले केम समाये मे सुलझने लगे है।

उपभोक्ता संबढ़ी मामलो पर भी इस पढ़ती से मामलो के लिप्टन के लिए उपभोक्ता अदालतों के साथ मध्यस्थता केंद्र खोलने का अभियान शुरू हो गया है । उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम मे संशोधन केर सरकार उपभोक्ता अदालतों के साथ मध्यस्थता केंद्र खोलने का प्रावधान केरने जा रही है।

 दिल्ली सरकार ने उपभोक्ता अदालतों के साथ मध्यस्थता केंद्र खोलने की पहल केर दी है ओट दिल्ली मे दिल्ली  डिसप्यूट रेसोलुशन सोसाइटी के अनतेरगत नौ केंद्र खुल चुके है जो कार्येरत है। इन अदालतों मे अब आम जनता किसी भी प्रकार के मामले बिना शुल्क निपटने के लिए व्यवस्था है । इसमे दो प्रकार से मामले आ सकते है –उपभोक्ता अदालतों द्वारा भेजे गए मामले तथा अपने आप से सीधे मध्यस्थता केनदे मे आ केर पंजीकृत होने वाले मामले । जो मामले प्भोकता अदालत की सिफ़ारिश पर आते है ,उनका समझोटा होने पर उन्हे उपभोक्ता अदालत मे वापिस भेजा जाता है जहां उसे आदेश का रूप दे दिया जाता है । चूकी ये दोनों पक्षो का अपना ही फैसला होता है ओर उस समझोटे पर दोनों पक्षो के हस्ताक्षर होते है ,इसकी कोई अपील भी नहीं होती ओर मामला सदा के लिए सुलझ जाता है ।  दूसरे प्रकार के मामले वह मामले होते है जो किसी भी प्रकार के झगड़े हो सकते है –जैसे पार्किंग के झगड़े ,मोहल्ले या  सोसाइटी के रखरखाव के झगड़े ,पारिवारिक संपाती के झगड़े ,पति पत्नी के झगड़े। इस श्रेणी मे हेर प्रकार के मामले दर्ज होते है । मध्यस्थता तभी संभव हो सकती है जब दोनों ही पक्ष इस के लिए राजी हो । उपभोक्ता अदालत मध्यस्थता केंद्र मे मामला भेजने से पहले दोनों की  सहमति ले ली जाती है। किन्तु जो मामले सीधे केंद्र मे आते है उनमे कई बार दूसरा पक्ष सामने नहीं आता । ऐसे मे भी यदि कोई अपना मामल मध्यस्थता के नाध्यम से निपटना चाहता है तो अपना पंजीकरण करा सकता है । मध्यस्थता केंद्र दूसरे पक्ष को दो बार  नोटिस भेजता है ।यदि वे उपस्थित हो केर अपनी सहमति दे देते है तो मध्यस्थता की प्रक्रिया पूरी की जाती है । इस प्रकार के समझोटे यद्यपी किसी अदालत मे नहीं जाते किन्तु यह दोनों का अपना समझोटा होने के कारण दोनों को मनये ही होता है जिसे एग्रीमंट के रूप मे तैयार किया जाता है ओर उस पर दोनों के हस्ताक्षर होते है ।

मदयस्थ की इसमे बड़ी महेत्वपूर्ण भूमिका रहती है । उसका निष्पक्ष होना सबसे बड़ी आवश्यकता होती है । दोनों पक्ष अपनी बात  रख सकते है तथा चाहे तो अलग से भी मध्यस्थ से बात केर सकते है । मध्यस्थ का दायित्व होता है कि वह दोनों की बात सुने पर एक दूसरे की बात न बताए जब तक कि बताने वाला व्यक्ति ऐसा न चाहे । मध्यस्थ एक तरह से दोनों को एक बीच की स्थिति तक आने मे मदद केरता है । इस सारी प्रक्रिया को सफलता पूर्वक केरने के लिए मध्यस्थ को विशेष प्रशिक्षण दिया जाता है ।

दिल्ली मे इस समाये सभी जिला अदालतों के साथ मध्यस्थ केडर स्थापित है –तीस हजारी कोर्ट,रोहिणी कोर्ट,द्वारका कोर्ट साकेत कोर्ट तथा पटियाला हाउस । दिल्ली उच न्यायल्ये तथा सर्वोच न्यायल्ये मे तो बड़े पैमाने पर मध्यस्थता से मामले निपटाए जाते है । उपभोक्ता मामलो के निपटान के लिए कुछ मध्यस्थता सस्थान कम केर रहे है जहा बिना अदालत मे गए भी आप अपने मामले का निपटारा केरवा सकते है-   

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