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क्या छात्र भी उपभोक्ता है

                        क्या छात्र भी उपभोक्ता है

      यह प्रश्न अब सुधा के सामने था जिसे अपना सपना सच होता नज़र आया जब डाकिया एक चिठ्ठी उसे दे कर गयाआई.  आई. टी. कानपूर में इंजीनियरिंग में उसे दाखिला मिल गया। इस बीच वह निराश हो चुकी थी और उसने  तीन साल का कम्प्यूटर कोर्स करने का फैसला भी कर लिया थाप्रेरणा कम्प्यूटर अकादमी नाम के इंस्टिट्यूट ने तीन साल का कोर्से पूरा करने पर नोकरी का भी वादा किया, तो उसने तीनो साल की फीस भी जमा करा दी थी -कुल दो लाख सत्तर हज़ार रुपये। इंस्टिट्यूट को दाखिले के समय ही उसने बता दिया था कि उसने इंजीनिरिंग के लिए भी आवेदन कर रखा है और उसे मैनेजमेंट ने वादा किया था कि ऐसी स्थिति आने पर उसकी सारी  फीस वापिस कर दी जायेगी। उसने तुरंत इंस्टिट्यूट से संपर्क किया और यह  सूचना दी .पर ये क्या-प्रिंसिपल को तो अब याद ही कुछ नहीं। अनजान बन सुधा से ही पूछने लगे -आपने दाखिला लेने  से पहले हमारे रूल नहीं पढ़े थे। अब आपकी सीट अगर  खाली  जाती है तो हमें तीन साल की फीस का नुक्सान होगा  I हम अपने पूरे सै शन के सारे खर्च कर चुके है ,स्टडी मेटीरियल तैयार  है ,फैकल्टी अपॉइंट  हो चुकी है -अब तो कुछ नहीं हो सकता। 

                सुधा सकते में थी।  हद तो तब हो गई जब उसके ओरिजिनल सर्टिफिकेट्स वापिस करने के लिए दस हज़ार और मांगे गए।  सुधा किसी भी हालत में इंजीनियरिंग का अपना सपना नहीं छोड़ सकती थी।  दस हज़ार दे कर सेर्टिफिकेट  तो ले लिए पर इंस्टिट्यूट ने देने से पहले साथ ही यह लिखवा भी लिया कि वह कोई केस नहीं करेगी और फीस वापिस नहीं मांगेगी।

      प्रायः यह होता है छात्रो के साथ.सबसे अधिक दिक्कत अभिभावको को तब होती है जब उन्हें एक से अधिक जगह पर फीस देकर सीट आरक्षित करनी पड़ ती है और बाद में पसंद के कोर्से में दाखिला मिलने पर फीस के रिफंड लेने की  स्थिति आती है तो संस्थान अपने प्रॉस्पेक्टस ,नियमो तथा शर्तो का हवाला दे कर फीस रिफंड करने से इंकार करते है।  इस प्रक्रिया में जनता के लाखो रुपये लगे होते है। पर अब उपभोक्ता अदालतो के दरवाज़े छात्रो के लिए भी खुले है और वे अपनी शिकायत ले कर वहाँ जा सकते है।

 सुधा ने भी ऐसा ही किया। उपभोक्ता अदालत ने उसकी सारी बात पर गौर किया।  इंस्टिट्यूट का रवैया सेवा में कमी का तो था ही ,छात्र कि मजबूरी का फायदा उठा कर ओरिजिनल सर्टिफिकेट्स के लिए और पैसा मांगना नितांत अनुचित कृत्य था।  फीस न मांगने तथा केस न करने का प्रेशर बनाने के लिए कोर्ट का रुख बड़ा सख्त हुआ। सुधा की सारी फीस तो वापिस कराइ ही इंस्टिट्यूट के अनुचित व्यवहार के लिए उसे लाख रुपये सुधा को मुआवजे के रूप में देने के आदेश दिए। 

      इस सारे सन्दर्भ पर एक बात जानने की आवश्यकता है कि यह सब इतनी आसानी से नहीं हो गया था।  जब उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम   में १९९३ संशो धन में वस्तुओ के साथ साथ सेवाओ को भी उपभोक्ता अदालतो का विषय बना दिया गया तो सभी सेवा देने वाली एजेंसियो  ने पूरी कोशिश की  कि वे इस परिधि से मुक्त रहे। शिक्षा संस्थानो ने भी कई तर्क दे कर उपभोक्ता अदालतो से बाहर रहने की कोशिश की। किन्तु जब यह मामला सर्वोच्च न्यायालय पहुंचा तो कई केसो में  तर्क सुनने के बाद  तथा सभी परिस्थितियो तथा वर्त्तमान समाज व्यवथा को देखते हुए सर्वोच्च न्यायालय  अंततः इस नतीजे पर पंहुचा कि छात्र उपभोक्ता है और शिक्षण संसथान सेवा प्रदान करने वाली एजेंसी.

सर्वोच्च न्यायालय ने अपने  एक महत्वपूर्ण निर्णय के माध्यम से सभी संस्थानो को निर्देश दिए

1.   शिक्षा संस्थान पूरे सत्र की फीस एक साथ नहीं ले सकते,एक सत्र या एक वर्ष कि फीस एक साथ ली जा सकती है।

2.   छात्र के संस्थान छोडने के वाजिब कारन पर अनुपातिक फीस काट कर शेष लौटायी जाये.

3.   मूल प्रमाणपत्र संसथान नहीं रोक सकता.

साथ ही शिक्षण संस्थानो कि वर्त्तमान स्थिति पर अपना मत भी व्यक्त किया--

     “यह सत्य है कि शिक्षा आज भी एक उत्कृष्ट कर्म है किन्तु इसके व्यवसायीकरण हो जाने में भी कोई कसार बाकी नहीं बची। तो यह समाज सेवा है, ही स्वार्थरहित, लाभरहित कर्म।  जिस विश वास की बात कभी किसी जमाने में शिक्षक छात्र के बीच होती थी, वह भी अब कही दिखाई नहीं देती। शिक्षा भी अब एक दुकानदारी है।” 

“चाहे छात्र संस्थान का ही अंग हो ,उसकी स्कूल या कॉलेज के प्रशासन में कोई भागीदारी नहीं होती। उसे उन नियमो का पालन करना होता है जो प्रशासन उनके लिए बनाता है।  स्पष्ट है कि एक सेवा लेता है और दूसरा सेवा देता है जिसके लिए बाकायदा फीस दी जाती है।“ 

    

यूनिवर्सिटी ग्रांट कमीशन ने भी इसी तर्ज पर  नोटिफिकेशन जारी किया -

1.   छात्र के कुछ कक्षाएं लेने पर एक हज़ार काट कर शेष राशि लोटे जाये

2.   मूल प्रमाण पात्र संसथान किसी भी दशा में नहीं रख सकता

अब छात्र  अपने कॉलेज या स्कूल  के विरुद्ध निम्न लिखित बातो के लिए उपभोक्ता अदालत जा सकते है

1.       स्कूल की  व्यवथा में ढीलापन.

2.   पर्याप्त शिक्षक होना.

3.       सुविधाओ की  कमी .

4.       पाठ्यक्रम का समय पर शुरू किया जाना.

5.   अध्ययन सामग्री का दिया जाना

6.   कक्षाएं लेने के स्थान में परिवर्तन

7.   मूल प्रमाण पत्र देने से इंकार करना.

8.   संस्थान के बारे में गलत तथा भ्रामक सूचना देना

9.   नोकरी का वादा करके उसे पूरा न करना

10. कालेज छोड़ने पर फीस न लौटाना

11.

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