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13..04.2014

सोच-समझकर करें पार्किंग में गाड़ी पार्क

वैले सुविधा के बारे में अदालतों ने माना है कि गाड़ी छोड़ने पर मिली डॉकेट पर लिखी वॉर्निंग ग्राहकों पर लागू नहीं होती, क्योंकि ग्राहक न तो ऐसे छोटे अक्षरों मे लिखे गए निर्देश पढ़ता है और न ही निर्देश से बंधा माना जा सकता है, क्योकि यह एकतरफा डिसक्लेमर है। न तो ग्राहक ने इसके लिए कहीं साइन किए होते हैं और ना ही उन निर्देशों को माना होता है।

सोच-समझकर करें पार्किंग में गाड़ी पार्क

नवभारत टाइम्स | Apr 13, 2014, 12.35PM IST

 

 

 

 

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http://navbharattimes.indiatimes.com/photo/7209626.cmscar-parkingप्रे मलता

मूलचंद अग्रवाल अपने दोस्तों के साथ एक होटल में खाना खाने गए। होटल ने अपने ग्राहकों के लिए मुफ्त पार्किंग की व्यवस्था की हुई थी। कार पार्क करने पर मूलचंद को एक टोकन दिया गया, जिस पर लिखा था - मालिक अपने जोखिम पर पार्क करे। पार्किंग से मूलचंद की कार चोरी हो गई। कार का इंश्योरेंस था, इसलिए इंश्योरेंस कंपनी ने एक लाख 22 हजार रुपये का क्लेम मूलचंद को दे दिया। मूलचंद होटल से हर्जाना चाहते थे, इसलिए वह कन्जयूमर कोर्ट चले गए। उन्होंने होटल से हर्जाने के रूप में दो लाख 24 हजार दिलवाने की मांग की। साथ ही, मानसिक कष्ट तथा असुविधा के लिए भी 25 हजार रुपये का दावा किया।

स्टेट कमिशन ने पार्किंग को होटल की दी गई सेवा नहीं माना, क्योंकि यह सुविधा फ्री थी। साथ ही यह तर्क भी स्वीकार किया गया कि होटल मे आने वाले सभी व्यक्ति खाना खाने नहीं आते, जिससे कि उनसे पैसे वसूल किए जा सकें। लेकिन मामला जब नैशनल कमिशन पहुंचा तो कमिशन ने इसे दूसरे नजरिये से देखा। नैशनल कमिशन ने यह माना कि कार पार्किंग का किराया सभी ग्राहकों के खाने के बिल में ही समाहित होता है। ग्राहकों को आकर्षित करने के लिए ऐसी सुविधाएं दी जाती हैं। दी गई सुविधाओं के पीछे एक इच्छा यह होती है और मिला लाभ उनका शुल्क होता है। लेकिन इस केस में चूंकि इंश्योरेंस कंपनी ने क्लेम का भुगतान कर दिया था, इसलिए एक नुकसान के लिए दो बार भरपाई की बात नहीं मानी गई। हां, मानसिक कष्ट के लिए अदालत ने 10 हजार रुपये का मुआवजा देने का आदेश दिया ।

ऐसे ही एक अलग मामले में साल 2008 में नैशनल कमिशन ने मेसर्स हयात रेजेंसी वर्सेस अतुल वीरमानी के मामले में स्टेट कमिशन के उस आदेश को सही ठहराया, जिसमें कस्टमर को उनकी कार की कीमत 2 लाख रुपये और 5000 रुपये कानूनी खर्च के रूप में देने को कहा गया था। यहां भी हर्जाना देने से बचने के लिए तमाम तर्क दिए गए। कहा गया कि पार्किंग सुविधा फ्री होती है, इसलिए ग्राहक कन्जयूमर नहीं होगा। एक तर्क यह भी था कि वैले फैसिलिटी में जो डॉकेट दी जाती है, उस पर स्पष्ट लिखा होता है कि ग्राहक अपने रिस्क पर सुविधा लें। इस तर्क को कमिशन ने सिरे से खारिज कर दिया। मामले में भी नैशनल कमिशन ने होटल को गाड़ी चोरी के लिए जिम्मेदार माना।

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वैले सुविधा के बारे में अदालतों ने माना है कि गाड़ी छोड़ने पर मिली डॉकेट पर लिखी वॉर्निंग ग्राहकों पर लागू नहीं होती, क्योंकि ग्राहक न तो ऐसे छोटे अक्षरों मे लिखे गए निर्देश पढ़ता है और न ही निर्देश से बंधा माना जा सकता है, क्योकि यह एकतरफा डिसक्लेमर है। न तो ग्राहक ने इसके लिए कहीं साइन किए होते हैं और ना ही उन निर्देशों को माना होता है।

जब आप किसी सेमिनार में आमंत्रित होते हैं और पार्किंग के लिए आपको स्टिकर दिया जाता है, तो गाड़ी चोरी होने पर जिम्मेदारी उस वैन्यू के केयरटेकर या ऑर्गेनाइजर में से किसी की होगी। यह उन दोनों के बीच हुए एग्रिमेंट पर निर्भर करेगा। हालांकि ऐसे तमाम मामले जब कन्जयूमर कोर्ट में लाए गए तो तर्क यह दिया गया कि वाहन रखने के लिए कोई फीस नहीं ली गई होती है, इसलिए आमंत्रित लोग कन्जयूमर नहीं होंगे। लेकिन यह तर्क अदालतों ने नहीं माना। कोर्ट का कहना था कि चूंकि सेमिनार का ऑर्गेनाइजर इन सब सुविधाओं के लिए खर्च कर रहा होता है, इसलिए जिम्मेदारी तो बनती है।

सावधानियां
गाड़ी पार्क करने से पहले अगर आप कुछ बातों का ध्यान रखेंगे तो आप पार्किंग अथॉरिटी को सेवा में कमी का दोषी मान सकते हैं और कन्जयूमर कोर्ट में शिकायत कर सकते हैं:
- गाड़ी पार्क करने से पहले यह देखें कि पॉर्किंग अथॉराइज्ड है या नहीं।
- यह देखना भी जरूरी है कि पर्ची पर गाड़ी का नंबर पूरा लिखा है या नहीं।
- पर्ची या वैले सुविधा में मिली डॉकेट को संभाल कर रखें।
- यह भी पता लगाएं कि जिसके पास पार्किंग की ठेकेदारी है, उसके पास लाइसेंस है या नहीं।
- गाड़ी की चाबी पार्किंग ठेकेदार को देकर न जाएं। डोर ठीक से लगाकर चाबी वापस लें, क्योंकि इसका कोई भरोसा नहीं कि कौन कब ड्यूटी पर होगा।