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चिकित्सा के लिए रोगी की सहमति /स्वीकृति (भाग-111)

                        

                  चिकित्सा के लिए रोगी की  सहमति /स्वीकृति

                              (भाग-111)

विशेष सहमति (इन्फॉर्म्ड कसेंट )

यह प्रत्येक व्यक्ती का मौलिक अधिकार है ओर मानवाधिकार भी  है  कि उसके शरीर के साथ उसकी अनुमति के बिना कुछ न किया जाए ।चिकित्सा के क्षेत्र मे होस्पिटल्स मे सहमति पत्र की पद्धती विकसित की गई है जिसमे रोगी के  ओपरेशन से पूर्व रोगी या उसके निकटतम परिजनो से सहमति पत्र पर हस्ताक्षर लिया जाता है ताकी आपात स्थिति मे किसी प्रकार की जटिलता  उतपन होने पर डोक्टर अपनी समझ से कदम उठा सके ।यह एक समानय पत्र होता है । किन्तु समय के साथ साथ जटिलताओ  के बड़ जाने से तथा कानूनी कारणो से भी “इन्फॉर्म्ड कोंसेंट” पत्र भी विकसित किए गए है जिसमे कोई जटिल स्थिति सामने आने पर रोगी की जान बचाने के लिए कोई विशेष कदम उठाने की आवश्यकता पड़ जाए तो उसके लिए भी रोगी से अनुमती ली जाती है । मकसद यह होता है कि रोगी जान ले कि अमुक ओपरेशन करने से उसके बचने की कितनी संभावना है ओर कितना खतरा । कभी  कभी जान बचाने के लिए किसी अंग को भी निकालना पड़ जाता है ,उसके लिए ली जाने वाली स्वीकृति को इन्फॉर्म्ड कसेंट कहते है ।

ममता को गरभवती होने के कुछ दिनो बाद ही रक्त्स्त्रव रहने लगा जो पाँच महीने तक चला । अचानक स्थिति गंभीर होने पर हॉस्पिटल लाया गया ,डाक्टर ने उसका गर्भाश्य निकाल दिया । ममता का ये पहला बच्चा था। ममता से इसकी अनुमति लेने की स्थिति ही नहीं आई क्योकि जान बचना आवश्यक था । जब मामला अदालत पहुचा तो डाक्टर का पक्ष था- ओपरेशन थिएटर से ही नर्स को बाहर भेजा गया था ओर ममता के पति से पूछा गया था कि जान बचाने के लिए यह कदम उठाया जाए या नहीं। ममता के पति ने ओपराशन ओर अंग निकालने की अनुमति दे दी थी  । ऐसी स्थिति मे ममता की सहमति न होने पर भी ओर लिखित मे फार्म भरा न होने पर भी डाक्टर की लापरवाही नहीं मानी जाएगी । इस मामले मे डाक्टर ने अनय दो विशेषज्ञो की राय  तथा ममता के पति से ली अनुमति की नोटिंग तथा नर्स के हस्ताक्षर प्रस्तुत कर दिये थे  ।     

डाक्टर पर लगाए गए आपराधिक मामले समान्यत सफल नहीं होते क्योकि सर्वोच न्यायल्य का यह मानना है  कि अदालत के डर से कांपते हाथो से डाक्टर ओपराशन नहीं कर सकता ओर आपराधिक मामले के लिए घातक मंशा का होना आवश्यक होता है ओर डाक्टर की मंशा हत्या नहीं हो सकती । घोर लापेरवाही मे सिविल मामला बन सकता है जिसमे मुआवजा दिया जा सकता है ,खर्चा दिलाया जा सकता है । ऐसी स्थिति एमेर्जेंसी ओपराशन मे पैदा हो जाती है इसलिए ओपराशन के समय निकटतम परिजन अवश्य पास होना चाहिए जो स्वीकृति दे सके जिसके न होने से ओपराशन मे देर हो सकती है ओर नुकसान हो सकता है । रोगी या उसके परिजन फैसला तुरत ले ताकी इलाज जल्दी हो सके ।

एनेस्थीसिया

ओपराशन के समय एनेस्थीसिया की आवश्यकता होती है जो अलग अलग स्थितियो मे अलग होता है । वर्ष 1996 मे मेडिकल नेगलिजेंस के एक मामले मे सोलह वर्ष के मेधावी बालक की मृत्यु इस लिए हो गई थी  कि उसे स्पाइनल एनेस्थीसिया दे दिया गया था । स्पाइनल एनेस्थीसिया इस उम्र के व्यक्ती को नहीं दिया जा सकता था । एनेस्थीसिया की मात्रा ओपराशन मे लग्ने वाले समय के अनुसार होता है।यद्यपि यह सब बाते डाक्टर के विचार के लिए होती है ।तथापी यदि रोगी या उसके परिजन इन सब बातो  की जानकारी लेना चाहे तो ले सकते  है ।

एलरजी

कुछ ओषधिया प्रत्येक व्यक्ती के शरीर के अनुकूल नहीं होती ओर उनके प्रयोग से पहले रोगी पर  एलेरजी टेस्ट की आवश्यकता होती है । इसकी जानकारी यदि रोगी को हो तो डाक्टर को बताए। डाक्टर का भी कर्तव्ये होता है कि रोगी से किसी प्रकार की एलेरजी  होने की बात पूछे ओर किनही विशिष्ट ओषधियों ओर इंजेक्शन के प्रयोग से पहले एलरजी  टेस्ट करे जिसके न करने को भी लापेरवाही माना जाएगा । रोगी कोई रेगुलर दवा खा रहा हो तो उसकी बात भी डाक्टर को बतानी चाहिए क्योकि कुछ दवाइया परस्पर प्रतिकूल प्रभाव डालती है । डाक्टर को इसके बारे मे न बताने पर होने वाले परिणाम के लिए डाक्टर दोषी नहीं माना  जाएगा ।

ध्यान देने की आवश्यक बाते-

·         ऑपरेशन के समय रोगी के पास कोई परिजन अवश्य रहे ।

·         ओपराशन से पहले भरे जाने वाले फार्म को ध्यान से पड़े कि आप किस बात के लिए सहमति दे रहे है ।

·         किसी ओषधी से एलेरजी होने या कोई रेगुलर दवा ले रहे हो तो डाक्टर को इलाज से पहले बताए।

·         ओपराशन की स्थिति मे डाक्टर से एनेस्थीसिया आदि के बारे मे जान ले ।

आपात स्थिति मे किए गए ओपराशन के बाद डाक्टर के आपात निर्णये तथा  नोटिंग की प्रति मांग सकते है। 

प्रेम लता

 

 

  

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