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एजेंट की भूल के लिए कंपनी का दायित्व

            एजेंट की भूल के लिए कंपनी का दायित्व

सामान्यतः कोई  भी व्यक्ति दूसरे की भूल के लिए कभी उत्तरदायी नहीं होता पर कुछ परिस्थितिया ऐसी होती है जब दूसरे की गलती का भुगतान आपको करना पड़ सकता है। इसे प्रिंसिपल की एजेंट के काम के लिए विकेरिओस लायबिलिटी कहते है। ऐसा तब होता है जब आप किसी व्यक्ति को अपनी और से कुछ काम करने का जिम्मा सोंपते है। बीमा कम्पनियो के मामले में प्रायःऐसा देखा गया है कि वे अपना व्यापार बढ़ाने के लिए एजेंट नियुक्त करती है। किन्तु जब कभी एजेंट आम जनता को गलत सूचनाए दे कर क्लाइंट बनाने की  कोशिश करता है या ऐसी भूल करता है जिससे बीमित व्यक्ति  को नुक्सान पहुचता है या बीमा ही रद्द हो जाता है या फिर बीमे की  राशि मिलने में तकनीकी अडचन  जाती है तो प्रश्न उठता है यहाँ दोष किसका होगा और जिम्मेदारी किसकी होगी। ऐसी स्थिति में बीमित व्यक्ति  जब उपभोक्ता अदालत जाता है तो दोनों में से कोई भी अपने ऊपर जिम्मेवारी नहीं लेना चाहता।  सेवा में कमी के इस प्रश्न के लिए एजेंट की भूमिका जानना बहुत  जरूरी हो जाता है। बीमा एजेंट आम जनता को पालिसी के विषय में विस्तृत जानकारी देते है और प्राधरीकृत   एजेंट होने के नाते उनके द्वारा कही गयी बाते बीमा कम्पनी द्वारा कही गयी बाते मानी जानी चाहिए। किन्तु एजेंट प्रपोजल फॉर्म भरवा कर या बीमा कंपनी के नाम चेक  लेकर पालिसी बन जाने का वादा नहीं करता,इसके लिए अनुमोदन कंपनी द्वारा ही होता है। एजेंट कैश  में या अपने नाम चेक भी नहीं ले सकता क्योकि कंपनी के रेगुलेशन ()१९८१ में विशेष रूप से इसकी मनाही है जो आम जनता को पता नहीं होता।  सवोच्च न्यायालय ने वर्ष १९९७ के अपने एक आदेश में हर्षद जे  शाह बनाम एल आई सी  के मामले में यह बात स्प्ष्ट कर दी थी। इसी तर्ज पर २००९ में नेशनल कमीशन ने भी एल आई सी बनाम गिरधारी लाल व् केसवानी मामले में इस बात को दोहराया है कि एजेंट को बीमा कंपनी की और से कैश पैसा या अपने नाम चेक लेने का अधिकार नहीं है। कोई यदि यह भूल करता है तो कंपनी का दायित्व नहीं होगा। किन्तु यदि चेक कंपनी के नाम काटा गया है और पालिसी नहीं बनती या रद्द हो जाती है तो एजेंट की गलती के लिए कंपनी भी जिम्मेदार होगी,एजेंट भी।

ब्रोकर और एजेंट में भी आम आदमी अंतर नहीं कर पाता। ब्रोकर वह व्यक्ति होता है जिससे आप संपर्क करके अपने पसंद की पालिसी लेने के लिए मदद ले सकते है। ब्रोकर विभिन्न बीमा कम्पनियो की पॉलिसियों में से आपके उपयुक्त पालिसी के विवरण ला कर आपको देगा,आप चुनाव कर सकते है।  ऐसे में ब्रोकर बीमित व्यक्ति का एजेंट होता है बीमा  कंपनी का नहीं।  ऐसे में ब्रोकर के किसी भी काम के लिए बीमा कंपनी का कोई दायित्व नहीं होता।  इसलिए ब्रोकर के साथ डील करने में पूरी सावधानी की  आवश्यकता होती है ,अच्छा हो अपनी जान -पहचान का ही व्यक्ति हो।  प्रायः ऐसा होता है कि ब्रोकर अपनी ब्रोकरेज  बनाने के चक्कर में लम्बी अवधी कि डिपाजिट वन  टाइम पेमेंट  कह कर करवा लेते है और बाद में यह पता चलता है कि पेमेंट प्रति वर्ष देनी होगी।  ऐसा तभी होता है जब नियम शतो पर बिना पड़े साइन कर दिया जाता है। 

कौन किसका एजेंट है,यह बात तथ्यो पर निर्भर करती है।  वर्ष २००५ में एक बड़ा मामला सवोच्च न्यायालय ने निपटाया जिसमे यूं टी आई ने जमाकर्ताओं के चेक डाक से भेजे जो किसी को नहीं पहुंचे। चूकि जामकर्ताओ ने डाक से भेजने का अनुरोध नहीं किया था,डाक बिभाग यूं टी आई का एजेंट माना गया और दायित्व यूं टी आई  का हुआ।  क्योकि पब्लिक ने डाक विभाग को नहीं चुना था।  

स्पष्ट है कि हर मामले में बीमा कंपनी उत्तरदाई नहीं होती।

इन्शुरन्स के मामले में बीमित व्यक्ति उपभोक्ता है तथा अपनी शिकायत के लिए उपभोक्ता अदालत का दरवाज़ा खटखटा सकता है। इसके लिए जरूरी यह है कि उसके पास प्रीमियम अदा करने का प्रमाण हो और उसका चेक बैंक से क्लिअर हो गया हो। बीमा चेक की तारिख से माना जाता है कि क्लियर होने की  तारिख से।  बीमा प्रपोजल फॉर्म के भरने के बाद से हो जाना माना  जायेगा चाहे कंपनी कभी भी चेक भुनाए।  चेक क्लियर होने में बीमित व्यक्ति का दोष नहीं होना चाहिए। ही चेक डिसऑनर होना चाहिए। पालिसी का एक महीने के भीतर आना कंपनी की गलती मानी जायेगी और इस बीच कुछ दुर्घटना होने पर बीमित को पालिसी का लाभ पालिसी पेपर होने पर भी मिलेगा। 

 

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डाक्टर प्रेम लता

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