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सिलेंडर से गैस का रिसना -जिम्मेदार कौन

                  सिलेंडर से गैस  का रिसना -जिम्मेदार कौन

      एक आम शिकायत है -गैस पांच ही दिन में  ख़तम हो गई।  समाधान बताया गया -बिना तोले सिलेंडर  ले. पर यह फार्मूला भी जल्दी फेल हो गया।  तोल कर तो लिया था ,वजन पूरा था। खाली  हुआ तो पानी भरा निकला  ,इसका पता कैसे चले। 

      सुबह सुबह आप बाहर निकलिए -साइकलों पर गैस सिलेंडर लादे गैस एजेंसी के कर्मचारी सप्लाई के लिए निकल पड़े है।  पिछली शाम ही आपके वाउचर इशू करा लिए गए थे और गोदाम में गैस पहुचते ही आपका सिलेंडर उतरवा लिया गया,आप भी खुश,समय से पहले गैस मिल गई। गोदाम का दृश्य किसी को दिखाई नहीं देता -वही सुबह सुबह सिलेंडरो के साथ छेड़खानी हो जाती है। गैस निकाल  कर पानी भर दिया जाता है इस छेड़खानी में सिलेंडर कि नाब ढीली होती चली जाती है और गैस रिसना एक सामान्य समस्या बन जाती है। आप एजेंसी को शिकायत करें ,पाइप को ख़राब हुआ बता कर के उसे बदल कर चले जायेंगे। गैस का रिसना जस का तस वैसा का वैसा।

एक और राज  की बात -हर सिलेंडर कि एक मियाद होती है -पांच वर्ष। इसकी समाप्ति कि तारीख और वर्ष सिलेंडर के ऊपर के रिंग कि पट्टी पर लिखा होता है जिसे कोई नहीं देखता। डीलर को इस मियाद के बाद इन सिलेंडरो को एक्सपायर्ड मान कर  निकल देना होता है पर एजेंसी के कर्मचारी इन्हे ब्लैक मार्केटिंग के लिए इस्तेमाल करते है।  गैस का रिसना इन सिलेंडरो से भी होता है  

 पहला सबक आम आदमी को यह लेना होगा कि अपने सिलेंडरकी  ऊपर बताई बातो की जाँच  किये बिना ले. ही सीधे गोडाउन से लाये सिलेंडर को स्वीकार करे।  नियम के अनुसार सिलेंडर को एजेंसी  के आफिस से उसी दिन  इशू किया जाना चाहिए और वो सीधे  आपको पहुंचना चाहिए इससे टेंपरिंग कि सम्भावना कम रहती है।  

 अब मान लीजिये आपने सारी  सावधानी बरत ली फिर भी हादसा हो गया।  आप गैस एजेंसी के उपभोक्ता है और उपभोक्ता  संरक्षण अधिनियम १९८६ के अंतर्गत उपभोक्ता अदालत में शिकायत कर सकते है तथा मुआवजे की मांग कर सकते है। 

इस प्रकार के कई मामले उपभोक्ता अदालतो में आते रहते है और कई मामलो में देश की  सर्वोच्च अदालत   ने विस्तृत विचार विमर्श के बाद इस समस्या के कारणो और दायित्व पर अपने निर्णय दिए है।  वर्ष १९९५ में इंडियन आयल कारपोरेशन बनाम कांसुमेर प्रोटेक्शन कौंसिल के अपने  एक महत्व पूर्ण  निर्णय  में सर्वोच्च न्यायालय ने यह माना कि डीलर उत्पादक कंपनी का एजेंट नहीं होता ,इस लिए उसके दोष का दायित्व उत्पादक कंपनी का नहीं होगा क्योकि उनका सम्बद्ध प्रिंसिपल से प्रिंसिपल का सम्बद्ध है,दोनों अपने अपने कामो के लिए स्वयं उत्तरदायी होंगे। 

जब दोनों का दायित्व अपना अपना होगा तो कैसे  तय होगा कि हादसा किसकी गलती से हुआ।  इसी बात का खुलासा करने के लिए इंडियन आयल कंपनी ने गैस बन कर  पैक होने से लेकर एजेंसी के गोडाउन तक पहुचने की अपनी जिमेदारी मानी  और उसके बाद गोडाउन  से कस्टमर  के पास पहुचने की  जिमेदारी एजेंसी की होगी।  सर्वोच्च न्यायालय उत्पादक कंपनी से  पूरी प्रक्रिया का भी खुलासा माँगा

इंडियन आयल कंपनी ने पूरी प्रक्रिया को विस्तार में बताते हुआ उल्लेख किया कि गैस का सबसे पहले बॉटलिंग प्लांट में रिसाव टेस्ट किया जाता है जिसकी रिपोर्ट तैयार करके सम्बद्ध अधिकारी हस्ताक्षर करता है   इस प्रक्रिया में यदि रिसाव पाया जाता है तो यह ढूंढा जाता है कि रिसाव सिलेंडर के भीतर के रिंग से  है या वोल्व से है   इसके बाद सिलेंडर को पानी में डाल  कर वाटर टेस्टिंग की जाती है जिससे यह पता चल सके कि कही सिलेंडर की गर्दन से या बाहर से  रिसाव कि सम्भावना तो नहीं  और तब  उसकी भी रिपोर्ट तैयार करके सम्बद्ध अधिकारी के  हस्ताक्षर होते है।  इस प्रक्रिया के बाद सिलेंडरो को सील करके सम्बद्ध अधिकारी द्वारा  सत्यापित होने के बाद  एजेंसी के गोडाउन भिजवाया जाता है।  एजेंसी के गोडाउन में फिर से एजेंसी के अधिकारी के द्वारा सुरक्षा तथा वज़न की दृष्टि  से री -चेकिंग होनी आवश्यक होती हे और चेक करने के बाद अधिकारी हस्ताक्षर करता है। इस समय भी कोई दोष पाया जाने पर सिलिंडर को उत्पादक को वापिस भेजने  का दायित्व एजेंसी का होता है।  इस सारी  प्रक्रिया के बाद यदि कोई डीलर उपभोक्ता को   गैस उसके दायित्व पर दे देता है और उसको फिक्स करने का काम डीलर का कर्मचारी नहीं करता तो डीलरकिसी भी परिणाम के लिए  जिम्मेदार माना  जायेगा। किन्तु यदि उपभोक्ता स्वयं सिलिंदर ले कर आता है जिसमे अगेंसी कि पालिसी के तहत कुछ डिस्काउंट मिलता है तो सारी जिमेदारी उपभोक्ता की होगी। ऐसा प्रायप्रायः होता है कि उपभोक्ता अदालत में  केस नहीं जीत पाता। क्योकि सिलिंडर को लगाने का काम वह एजेंसी से करवा कर खुद करता है और अपनी मर्जी से करता है।  दुसरी स्थिति कभी कभी ऐसी भी होती है जब गैस समाप्त होने पर वह पड़ौसी से ले लेता है।  ऐसी स्थिती में वह उपभोक्ता

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