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रैगिंग एक ज्वलंत समस्या ; शिक्षण संस्थानो का दायित्व

            रैगिंग एक ज्वलंत समस्या ; शिक्षण संस्थानो का दायित्व

      परीक्षाए  निकट आते ही जहाँ विद्यार्थियो के लिए एक एक पल महत्वपूर्ण होने लगता है, वही अभिभावक अपने बच्चो के अगले पड़ाव के बारे में सोचने लग जाते है। विशेष रूप से स्कूल  की  पढ़ाई के अंतिम साल के छात्रों के माँ बाप तो दुधारी तलवार के नीचे होते है। नए कॉलेज या इंस्टिट्यूट में अपनी पसंद का विषय जूटा  पाना  या एक मुश्त फीस    की व्यवस्था करना तो फिर भी कर ही लेते है सभी माता पिता, पर जो भय उन्हें बचे कि सुरक्षा को ले कर होता है ,उसका निदान होता दिखाई नहीं देता। रैगिंग की जो भयानक तस्वीरे आये दिन सुर्खियो में दिखाई दे रही है ,अभिभावक उन सबसे त्रस्त है ,चिंतित है और असुरक्षित महसूस करते है। 

      हिमाचल प्रदेश  के डॉ राजेंद्र प्रसाद गवर्नमेंट मेडिकल कॉलेज के   मेडिकल स्टूडेंट अमन काचरू की आत्महत्या ने रैगिंग के इस वीभत्स  कृत्य पर कई सवाल खड़े   कर दिए थे। अमन ने अपने अंतिम नोट में  लिखा -'मेरी मृत्यु एक परिवर्तन लाएगी।'  वास्तव में ये मृत्यु एक आंधी ले कर आई। एक आंदोलन सा शुरू हुआ जो सर्वोच्च न्यायालय तक जा पहुंचा।  विश्व जागृति मिशन  ने पी. आई. एल के माध्यम से इस मुद्दे को उठाया और सर्वोच्च न्यायाल ने भी इसे   पूरी गभीरता से लेते हुए एक समिति का गठन किया जिसके अध्यक्ष जस्टिस राघवन को बनाया।सारे मामले की विशद छानबीन हुई तथा  राघवन कमिटी ने अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की. वर्ष 1998  के इस मामले ने समाज को हिला कर रख दिया, क्योकि कई ऐसे   दबे  मामले भी सामने आए  जो आये  दिन होते रहे थे ,किसी कि खबर लगी ,कोई यू ही ख़त्म हो गया।

रिपोर्ट के बाद सर्वोच्च न्यायालय की टिप्पणी थी-

“ रैगिंग के इस जघन्य कृत्य को छात्रो ,अध्यापको तथा अभिभावको में जाग्रति उत्पन्न करके रोका जा सकता है।  यह सन्देश समाज के सभी वर्गों को जाना चाहिए कि यह एक निन्दनीय  कृत्य है जिससे समाज का कोई भला नहीं हो सकता तथा इस प्रकार के जघन्य अपराध को अनदेखा नहीं किया जा सकता। ”
 

 इन सब को देखते हुए दो महत्वपूर्ण काम हुए -एक तो रैगिंग कि परिभाषा तय हुई और दूसरा सरकारी तंत्र के लिए गाइड लाइन्स तय की गई।  सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश पर तुरत फुरत यू जी सी ने सभी शिक्षण संस्थानो के लिए दिशा निर्देश जारी किये जिसमे प्रत्येक कॉलेज में विभिन समितिया बनाने के आदेश थे।  

रैगिंग की घटना के जिमेदार छात्रो के लिए कड़ी सजा के भी प्रावधान किये गए -

1.       छात्र का स्कालरशिप रोका जाना

2.       गतिविधियो में प्रतिनिधित्व  पर रोक

3.       परिणाम की घोषणा रोक लेना

4.       छात्रावास या कॉलेज से निलम्बन

      कोर्ट की इस टिप्पणी   के परिणाम स्वरूप तथा सरकार द्वारा जारी निर्देशो के परिणाम स्वरूप पिछले वर्षो कुछ कदम उठाये गए थे जिसमे चार छात्रो को कालेज से चार वर्ष तक के लिए निष्कासित किया गया था।  इस समाचार से समाज में कुछ संतोष भी दिखाई दिया।  किन्तु गत वर्ष जब चार साल का निष्कासन पूरा करने के बाद छात्र फिर कॉलेज लौट आये तो उनकी बहाली फिर एक सवाल बन गया ,विरोध हुआ,चर्चाएं  हुई।  कालेज  के विरुद्ध भी लोग सडको पर उतर आये।  अब सवाल यह भी है कि क्या कालेज सजा पूरी हो जाने के बाद भी छात्रो को वापिस लेने से इंकार कर सकता है।  क्या ऐसा करना भी अनुचित नहीं होगा जब प्रत्येक व्यक्ति को शिक्षा पाने का अधिकार ह। चूकि आज छात्र भी उपभोक्ता है तथा सेवा  में कमी के लिए उपभोक्ता अदालत जा सकता है तो शिक्षण संस्थान की  क्या भूमिका होगी और वह किस किस बात के लिए उत्तरदायी होगा। 

रैगिंग निरंतर प्रति वर्ष हो रही है। अभिभावक उसी तरह त्रस्त  है और उन्हें नहीं समझ रहा कि वे अपने बचो के लिए कैसे आश्वस्त हो सके।

      क्या शिक्षण संस्थान सेवा में कमी के लिए दोषी होगा यदि वह रैगिंग रोकने में समर्थ नहीं हो पाता।  इस विषय में महत्वपूर्ण बात ये होगी कि क्या संस्थान ने उन दि शा निर्देशों का पालन करने में कोताही बरती है या उन्हें अनदेखा किया है। क्या वांछित  समितिया बनाई गई है और वे निर्धारित  तरीके से काम कर रही है।  यदि कॉलेज किसी भी प्रकार से सरकारी   नीतियो का पालन नहीं कर रहा तो निश्चित रूप से सेवा में कमी के दोषी माने जायेगे।  पर जहा तक रैगिंग को न रोक पाने का प्रश्न है ,यह एक नितांत असंभावित कृत्य होने के कारण संसथान की पहुँच से बहार की बात है।  कठोर से कठोर नियम बनाये जा सकते है ,कठोर से कठोर सजा भी दी जा सकती है किन्तु कौन कब क्या करेगा यह नहीं जाना जा सकता। आपत स्थिति से निपटने के लिए प्रावधान तो  आवश्यक है पर आपदा जो बोल कर नहीं आती पर संस्थान का नियंत्रण नहीं हो सकता।  केवल सम्भावना के आधार पर भी शरारती,उदण्ड ,अनुशासनहीन छात्र को भी तब तक सजा नहीं दी जा सकती जब तक वह निषिद्ध कार्य कर नहीं देता।  स्थिति सच में शोचनीय है किन्तु जहा तक उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत सेवा में कमी का प्रश्न है, संसथान को केवल  निर्देश न पालन करने या समुचित व्यवथा न करने पर ही दोषी माना जा सकता है। 

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एक बार एक अध्यापक ने अपने छात्रो को ऐसा कुछ बनाने को कहा जिससे वे अपने अध्यापको के प्रति कृतज्ञता जाता सके।  सबने अपनी अपनी तरह से कोशिश की।  एक छात्र ने बिना बाजू का एक हाथ बनाया जिसपर सब लोग हस पड़े।  अध्यापक छात्र के पास गया और पुछा -तुम्हारे इस हाथ का क्या अर्थ है।  बच्चे  ने उत्तर दिया -मेरेलिए टीचर हमेश एक सपोर्ट है हाथ कि तरह ,मई टीचर का आभारी हूँ इसकेलिए। 

यह भावना होती थी कभी टीचर के लिए जो आज कही दिखाई नहीं देती। रैगिंग के रूप में एक आतंकवाद फ़ैल चूका है समस्त शिक्षा तंत्र में।  एक अनियंत्रित भीभीड़ है जो अनुशासनहीनता और उदंडता की सभी सीमाए लांग कर तानाशाह व्यवस्था को जनम दे रही है। 

हैम सभी इसके लिए चिंतित है ,सरोकार है हमारा।  पर हमारे देश केई मानसिकता निराश होने की भी नहीं है।  हमें भूलना नहीं चाहिए कि सूर्ये कि किरण कही है। यह तो केवल पृथ्वी कि स्थिति है जिसने प्रकाश को रोक रखा है -सूरज अवश्ये उगेगा। 

अनेक स्वयं सेवी संस्थाए इस काम में लगी है जाइए -

1.       विश्व जागृति मिशन

2.       सी यू आर

3.       एस वी

4.       स्पेस

5.       साथी

Dr Prem Lata

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